तुम इस जीवन में जो खोज रहे हो, तुमने अपने बेटे को जिस नजर से देखा है, या अपनी बेटी को, या अपने भाई को, या अपनी प्रेयसी को--तुमने जिस प्रेम की नजर से अपनी प्रेयसी को देखा है वही नजर काम आएगी। उसमें ही असली बात छिपी है .
ऐसा समझो कि एक मंदिर में तुम खड़े हो और आग लग जाए और तुम्हारा बेटा अभी मंदिर में है तो तुम मूर्ति बचाओगे कृष्ण की कि अपने बेटे को बचाओगे? मूर्ति-वूर्ति को तुम छोड़ जाओगे, भाग जाओगे, बेटे को लेकर बाहर निकल जाओगे। पता चल जाएगा वहां कि असलियत कहां थी। मूर्ति में इतना कोई लगाव थोड़े ही था। मूर्ति तो मूर्ति थी। बेटा असली था। वहां प्रेम है। वहां असली संगीत है प्रेम का। भक्त कहते हैं,
इसी प्रेम के संगीत को ऊपर उठाना है। इसी को ऊर्ध्वगामी करना है। इसी को परमात्मा की तरफ लगाना है। शंखों की आवाज से काम नहीं होगा। हृदय की आवाज! अजान से काम नहीं होगा--यह जो प्रेम का तुम्हारे भीतर छोटा-सा झरना है, इसी को बहाना है। यही बह -बह कर किसी दिन सागर तक पहुंचेगा
जय श्री कृष्णा......
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