भगवान शिव के उपासक ऋषि मृकंदु जी के घर कोई संतान नहीं थी .उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या की. भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा . उन्होंने संतान मांगी .भगवान शिव कहने लगे कि तुम्हारे भाग्य में संतान नहीं है .तुमने हमारी कठिन भक्ति की है इसलिए हम तुम्हें एक पुत्र देते हैं.उसकी आयु केवल तेरह वर्ष की होगी.
कुछ समय के बाद उनके घर में एक पुत्र ने जन्म लिया. उसका नाम मार्कंडेय रखा. पिता ने मार्कंडेय को शिक्षा के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम में भेज दिया .बारह वर्ष व्यतीत हो गए .मार्कंडेय शिक्षा लेकर घर लौटे. उनके माता- पिता उदास थे.जब मार्कंडेय ने उनसे उदासी का कारण पूछा तो पिता ने मार्कंडेय को सारा हाल बता दिया.मार्कंडेय ने पिता से कहा कि उसे कुछ नहीं होगा.
माता-पिता से आज्ञा लेकर मार्कंडेय शिव की तपस्या करने चले गए.उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की .एक वर्ष तक उसका जाप करते रहे. जब तेरह वर्ष पूर्ण हो गए तो उन्हें लेने के लिए यमराज आए .वे शिव भक्ति में लीन थे. जैसे ही यमराज उनके प्राण लेने आगे बढे तो मार्कंडेय जी ने शिवलिंग से लिपट गए.उसी समय भगवान शिव त्रिशूल उठाए प्रकट हुए और यमराज से कहा कि इस बालक के प्राणों को तुम नहीं ले जा सकते.हमने इस बालक को दीर्घायु प्रदान की है. यमराज ने भगवान शिव को नमन किया और वहाँ से चले गए .
तब भगवान शिव ने मार्कंडेय को कहा तुम्हारे द्वारा लिखा गया यह मंत्र हमें अत्यंत प्रिय होगा .भविष्य में जो कोई इसका स्मरण करेगा हमारा आशीर्वाद उस पर सदैव बना रहेगा.इस मंत्र का जप करने वाला मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है और भगवान शिव की कृपा उस पर हमेशा बनी रहती है.
यही बालक बड़ा होकर मार्कंडेय ऋषि के नाम से विख्यात हुआ.
अकाल मृत्यु वह मरे ,जो काम करे चंडाल का,
काल उसका क्या बिगाड़े ,जो भक्त हो महाकाल का.
जन्मकुण्डली में सूर्यादि ग्रहों के द्वारा किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका हो या मारकेश आदि लगने पर, किसी भी प्रकार की भयंकर बीमारी से आक्रान्त होने पर, अपने बन्धु-बन्धुओं तथा इष्ट-मित्रों पर किसी भी प्रकार का संकट आने वाला हो। देश-विदेश जाने या किसी प्राकर से वियोग होने पर, स्वदेश, राज्य व धन सम्पत्ति विनष्ट होने की स्थिति में, अकाल मृत्यु की शान्ति एंव अपने उपर किसी तरह की मिथ्या दोषारोपण लगने पर, उद्विग्न चित्त एंव धार्मिक कार्यो से मन विचलित होने पर महामृत्युंजय मन्त्र का जप स्त्रोत पाठ, भगवान शंकर की आराधना करें। यदि स्वयं न कर सके तो किसी पंडित द्वारा कराना चाहिए। इससे सद्बुद्धि, मनःशान्ति, रोग मुक्ति एंव सवर्था सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
ऊॅ हौं जूं सः। ऊॅ भूः भुवः स्वः
ऊॅ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उव्र्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
ऊॅ स्वः भुवः भूः ऊॅ। ऊॅ सः जूं हौं।
जय श्री कृष्णा......
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