इस संसार में सदा नहीं रहेंगे, ऐसा जिसको
समझ में आ गया, उसी को इस संसार में रहने
का ढंग आ गया।
जिसको समझ में आ गया कि ओस की बूँद है,
अब गिरी, तब गिरी; भोर की तरैया है, अब डूबी, तब डूबी।
सब क्षणभर का खेल है।
फिर क्या चिंता है ?
फिर किसको दुख देना है, किसको पीड़ा देनी है, किससे शत्रुता लेनी है ?
शत्रुता हम ले पाते हैं इसी आधार पर कि जैसे सदा यहीं रहना है।
पर इस शरीर के लिए ये संसार छड़भंगुर है...
जय श्री कृष्णा......
No comments:
Post a Comment