Tuesday, December 22, 2015

give me your undevided attention.

!!अहंकार ध्यान मांगता है और निरहंकार ध्यान देता है!!

एक करोड़पति मैंने सुना है, बहुत अड़चन में था। करोड़ों का घाटा लगा था। और सारी जीवन की मेहनत डूबने के करीब थी। नौका डगमगा रही थी। कभी मंदिर नहीं गया था, कभी प्रार्थना भी न की थी। फुरसत ही न मिली थी। ऐसे उसने पुजारी रख छोड़े थे। और मंदिर भी बनवा दिया था, जहां वे उसके नाम से पूजा किया करते थे।
लेकिन आज इस दुःख की घड़ी में कांपते हाथों वह भी मंदिर गया। सुबह जल्दी गया, ताकि परमात्मा से पहली मुलाकात उसी की हो, पहली प्रार्थना वही कर सके। कोई दूसरा पहले ही मांग कर परमात्मा का मन खराब न कर चुका हो। लेकिन देख कर हैरान हुआ कि गांव का भिखारी उससे पहले मौजूद था। अंधेरा था अभी। वह भी पीछे खड़ा हो गया, कि भिखारी क्या मांग रहा है।


धनी आदमी देखता है, कि मेरे पास तो मुसीबतें हैं; भिखारी के पास क्या मुसीबतें हो सकती हैं? और भिखारी सोचता है, देखता है, कि मुसीबतें मेरे पास हैं। धनी आदमी के पास क्या मुसीबतें होंगी?
दोनों मुसीबत में जीते हैं। अपने-अपने ढंग की मुसीबतें हैं; मुसीबतें जरूर हैं।

भिखारी की मुसीबत भिखारी के लिए बहुत बड़ी थी, धनपति के लिए कुछ बड़ी न थी। उसने सुना, कि भिखारी कह रहा है, हे परमात्मा! अगर पांच रुपए आज न मिलें तो जीवन नष्ट हो जाएगा। आत्महत्या कर लूंगा। ये तो चाहिए ही। पत्नी बीमार है और दवा के लिए पांच रुपए होना बिलकुल आवश्यक हैं। मेरा जीवन संकट में है।
इस अमीर आदमी ने यह सुना। और वह भिखारी बंद ही नहीं कर रहा है और कहे जा रहा है और प्रार्थना जारी है। तो उसने अपने खीसे से पांच रुपए निकालके उस भिखारी को दिए और कहा, कि ये पांच रुपए तू ले और जा। फिर उसने परमात्मा से कहा, “सर, नाउ यू केन गिव मी युअर अनडिवाइडेड अटेनशन : अब आप अनबटा ध्यान मेरी तरफ दे सकते हैं।

यह भिखारी से छुटकारा हुआ। मुझे पांच करोड़ रुपए की जरूरत है।”
अहंकार का सूत्र है : ए सर्च फार अनडिवाइडेड अटेनशन। एक खोज है अहंकार की, कि ध्यान तुम्हें मिल जाए।
अब इसे तुम समझ लो। अहंकार ध्यान मांगता है और निरहंकार ध्यान देता है। अहंकार मांगता है, सारी दुनिया की नजरें मुझ पर हों। अहंकार कहता है, जहां से मैं निकलूं, लोग मुझे देखें–“मुझे।” अहंकार की मांग है कि ध्यान मुझे मिले; और निरहंकार की मांग है, मैं कितना ध्यान बांट सकूं।


फूल के पास से भी गुजरूं, तो मेरी पूरी आत्मा को ध्यान के द्वारा फूल पर उंडेल दूं। और अगर तुम पूरी आत्मा से फूल पर अपने ध्यान को उंडेल दो, तो फूल परमात्मा हो जाता है। जहां ध्यान समग्र रूप से उंडेल दिया जाता है, वहीं मंदिर निर्मित हो जाता है। वह मंदिर बनाने की कला है।



जय श्री कृष्णा......

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