Thursday, January 21, 2016

किसान vs परमात्मा

एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया !
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कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए,
कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी
ओले पड़ जाये!
.
हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल
थोड़ी ख़राब हो जाये!
.
एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा, देखिये प्रभु,
आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेती
बाड़ी की ज्यादा जानकारी
नहीं है,
.
एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मै
चाहू वैसा मौसम हो,
.
फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा!
.
परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम
कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं
करूँगा!
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किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप
चाही, तब धूप मिली, जब पानी
तब पानी !
.
तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने
ही नहीं दी,
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समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की
ख़ुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल
तो आज तक नहीं हुई थी !
.
किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को,
कि फ़सल कैसे उगाई जाती हैं,
.
बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते
रहे.
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फ़सल काटने का समय भी आया , किसान बड़े गर्व से
फ़सल काटने गया,
.
लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा , एकदम से
छाती पर हाथ रख कर बैठ गया!
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गेहूं की एक भी बाली के
अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर
से खाली थी,
.
बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा, प्रभु ये क्या
हुआ ?
.
तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था, तुमने पौधों को
संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया .
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ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से
जूझने दिया ,
.
उनको किसी प्रकार की चुनौती
का अहसास जरा भी नहीं होने दिया ,
इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए,
.
जब आंधी आती है, तेज बारिश
होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से
ही खड़ा रहता है,
.
वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से
जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा
देता है,
.
उसकी जीवटता को उभारता है.
.
सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने ,
हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से
गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम
आभा उभरती है,
.
उसे अनमोल बनाती है !”
.
उसी तरह जिंदगी में भी अगर
संघर्ष ना हो, चुनौती ना हो तो आदमी
खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण
नहीं आ पाता !
.
ये चुनोतियाँ ही हैं जो आदमी
रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त
और प्रखर बनाती हैं,
.
अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ तो
स्वीकार करनी ही
पड़ेंगी,
.
अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे.
.
अगर जिंदगी में प्रखर बनना है, प्रतिभा
शाली बनना है, तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो
करना ही पड़ेगा !


जय श्री कृष्णा......

Wednesday, January 13, 2016

पाने का हक उसी को है . . . जो देना जानता है



एक गरीब आदमी ने सदगुरु महाराज से पूछा
: "मैं इतना गरीब क्यों हूँ?तब गुरु महाराज ने कहा :
"तुम गरीब हो क्योंकि तुमने देना नहीं
सीखा." !
गरीब आदमी ने कहा :
"परन्तु मेरे पास तो देने के लिए कुछ भी नहीं है"।
गुरु महाराज  ने कहा :
"तुम्हारा चेहरा: एक मुस्कान दे सकता है.
तुम्हारा मुँह: किसी की प्रशंसा कर सकता है या दूसरों को
सुकून पहुंचाने के लिए दो मीठे बोल बोल सकता है, तुम्हारे हाथ:
किसी ज़रूरतमंद की सहायता कर सकते हैं. . .
और तुम कहते हो तुम्हारे पास देने के लिए कुछ भी
नहीं ? !!
आत्मा की गरीबी ही वास्तविक
गरीबी है.
पाने का हक उसी को है . . .
जो देना जानता है ....!

जय श्री कृष्णा......

Saturday, January 9, 2016

Thoughtfull thought



आसमान में उड़ते पंछी को जब पिंजरे का पंछी देखता है, तो शायद वह उसे अपने पिंजरे की खूबियाँ, पिंजरे के मालिक की लिखी किताबों के विषय में बताता हो और कहता हो कि तू भी आ जा इस पिंजरे में, यहाँ सुख, शान्ति और समृद्धि है। ईश्वर भी यहीं मिलते हैं और मोक्ष भी यहीं मिलेगा...मालिक दो चार नाम रटने के लिए कहते और बस उसी से सारी बाधाएं, दुःख दूर हो जाते है....

 हो सकता है आप लोगों ने भी देखा हो राम नाम जपते या अल्लाह हू अकबर करते तोतों को ?
Did you?

🙏

Radhekrishna...

Thursday, January 7, 2016

human after death



एक बार एक आदमी मर जाता है...

जब उसे इसका एहसास होता है तो वो देखता है की भगवान हाथ में एक सूटकेस लिए उसकी तरफ आ रहें हैं।

भगवान और उस मृत व्यक्ति के बीच वार्तालाप .....

भगवान: चलो बच्चे वापिस जाने का समय हो चूका है।

मृत व्यक्ति: इतनी जल्दी? मेरी तो अभी बहुत सारी योजनाये बाकी थी।

भगवान्: मुझे अफ़सोस है लेकिन अब वापिस जाने का समय हो चूका है।

मृतव्यक्ति: आपके पास उस सूटकेस में क्या है?

भगवान् : तुम्हारा सामान ।

मृतव्यक्ति: मेरा सामान ? आपका मतलब मेरी वस्तुएँ....मेरे कपड़े....मेरा धन..?

भगवान्: वो चीजें कभी भी तुम्हारी नहीं थी बल्कि इस पृथ्वी लोक की थी ।

मृतव्यक्ति: तो क्या इसमें मेरी यादें हैं?

भगवान्: नहीं ! उनका सम्बन्ध तो समय से था।

मृतव्यक्ति: क्या इसमें मेरी योग्यताएं हैं?

भगवान् : नहीं ! उनका सम्बन्ध तो  परिस्थितियों से था।

मृतव्यक्ति: तब क्या मेरे दोस्त और मेरा परिवार ?

भगवान्: नहीं प्यारे बच्चे ! उनका सम्बन्ध तो उस रास्ते से था जिस पर तुमने अपनी यात्रा की थी।

मृतव्यक्ति: तो क्या ये मेरे बच्चे और पत्नी हैं?

भगवान्: नहीं! उनका सम्बन्ध तो तुम्हारे मन से था।

मृत व्यक्ति: तब तो ये मेरा शरीर होना चाहिए ?

भगवान्: नहीं नहीं ! उसका सम्बन्ध तो पृथ्वी की धूल मिटटी से था।

मृतव्यक्ति: तब  जरूर ये मेरी आत्मा होनी चाहिए!

भगवान्: तुम फिर गलत समझ रहे हो मीठे बच्चे ! तुम्हारी आत्मा का सम्बन्ध सिर्फ मुझसे है।

उस मृतव्यक्ति ने आँखों में आंसू भरकर भगवान के हाथों से सूटकेस लिया और उसे  डरते डरते खोला..

खाली.....

अत्यंत निराश.........दुखी होने के कारण आंसू उसके गालो पर लुढकते हुए बहने लगे। उसने भगवान् से पुछा।

मृतव्यक्ति: क्या कभी मेरी अपनी कोई चीज थी ही नहीं?

भगवान्: बिलकुल ठीक! तुम्हारी अपनी कोई चीज नहीं थी।

मृतव्यक्ति: तब...मेरा अपना था क्या?

भगवान: तुम्हारे पल.......
प्रत्येक लम्हा.. प्रत्येक क्षण जो तुमने जिया वो तुम्हारा था।

इसलिए हर पल अच्छा काम करो।
हर क्षण अच्छा सोचो।
और हर लम्हा भगवान् का शुक्रिया अदा करो।

जीवन सिर्फ एक पल है ...


जय श्री कृष्णा......

Wednesday, January 6, 2016

postman vs little girl gift

एक पोस्टमैन ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा,"चिट्ठी ले लीजिये।"अंदर से एक बालिका की आवाज आई,"आ रही हूँ।"लेकिन तीन-चार मिनट तक कोई न आया तो पोस्टमैन ने फिर कहा,"अरे भाई!मकान में कोई है क्या,अपनी चिट्ठी ले लो।"लड़की की फिर आवाज आई,"पोस्टमैन साहब,दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ।"पोस्टमैन ने कहा,"नहीं,मैं खड़ा हूँ,रजिस्टर्ड चिट्ठी है,पावती पर तुम्हारे साइन चाहिये।"करीबन छह-सात मिनट बाद दरवाजा खुला।पोस्टमैन इस देरी के लिए  झल्लाया हुआ तो था ही और उस पर चिल्लाने वाला था ही,लेकिन दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया,सामने एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे,सामने खड़ी थी।पोस्टमैन चुपचाप पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया।हफ़्ते,दो हफ़्ते में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती,पोस्टमैन एक आवाज देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता।एक दिन उसने पोस्टमैन को नंगे पाँव देखा।दीपावली नजदीक आ रही थी।उसने सोचा पोस्टमैन को क्या ईनाम दूँ। एक दिन जब पोस्टमैन डाक देकर चला गया,तब उस लड़की ने,जहां मिट्टी में पोस्टमैन के पाँव के निशान बने थे,उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया।अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवा लिये।दीपावली आई और उसके अगले दिन पोस्टमैन ने गली के सब लोगों से तो ईनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटिया से क्या इनाम लेना?पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ। उसने दरवाजा खटखटाया।अंदर से आवाज आई,"कौन?"पोस्टमैन,उत्तर मिला।बालिका हाथ में एक गिफ्ट पैक लेकर आई और कहा,"अंकल,मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।"पोस्टमैन ने कहा,"तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो,तुमसे मैं गिफ्ट कैसे लूँ?"कन्या ने आग्रह किया कि मेरी इस गिफ्ट के लिए मना नहीं करें।"ठीक है कहते हुए पोस्टमैन ने पैकेट ले लिया।बालिका ने कहा,"अंकल इस पैकेट को घर ले जाकर खोलना।घर जाकर जब उसने पैकेट खोला तो विस्मित रह गया,क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे।उसकी आँखें भर आई।अगले दिन वह ऑफिस पहुंचा और पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन कर दिया जाए।पोस्टमास्टर ने कारण पूछा,तो पोस्टमैन ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे कंठ से कहा,"आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा।उस अपाहिज बच्ची ने तो मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा?"

संवेदनशीलता का यह श्रेष्ठ दृष्टांत है। संवेदनशीलता यानि,दूसरों के दुःख-दर्द को समझना,अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना,उसमें शरीक होना। यह ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमें संवेदनशीलता रूपी आभूषण प्रदान करें ताकि हम दूसरों के दुःख-दर्द को कम करने में योगदान कर सकें।संकट की घड़ी में कोई यह नहीं समझे कि वह अकेला है,अपितु उसे महसूस हो कि सारी मानवता उसके साथ है।


जय श्री कृष्णा......


Tuesday, January 5, 2016

death place is already fixed

(((((((((( मृत्यु का स्थान ))))))))))
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भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए।
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तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी  उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।
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चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।
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उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा।
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गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।
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गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे।
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उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोस दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया।
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आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था।
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यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी।
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मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।"
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गरुड़ समझ गये "मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।"
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इस लिए कृष्ण कहते है।
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करता तू वह है
               जो तू चाहता है
परन्तु होता वह है
               जो में चाहता हूँ
कर तू वह
               जो में चाहता हूँ
फिर होगा वो
               जो तू चाहेगा ।


 जय जय श्री राधे

Monday, January 4, 2016

brother vs rival

दो भाई साथ साथ खेती करते थे। मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे। चालीस साल के साथ के बाद एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमें पहली बार झगडा हो गया था झगडा दुश्मनी में बदल गया था। - एक सुबह एक बढई बड़े भाई से काम मांगने आया. बड़े भाई ने कहा “हाँ ,मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं। उस तरफ देखो, वो मेरा पडोसी है, यूँ तो वो मेरा भाई है, पिछले हफ्ते तक हमारे खेतों के बीच घास का मैदान हुआ करता था पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतों के बीच ये खाई खोद दी, जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया है अब मुझे उसे मजा चखाना है, तुम खेत के चारों तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े."
“ठीक हैं”, बढई ने कहा।
बड़े भाई ने बढई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया, शाम को लौटा तो बढई का काम देखकर भौंचक्का रह गया, बाड़ की जगह वहा एक पुल था जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था. इससे पहले की बढई कुछ कहता, उसका छोटा भाई आ गया।
छोटा भाई बोला “तुम कितने दरियादिल हो , मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया, कहते कहते उसकी आँखे भर आईं और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे. जब दोनों भाई सम्भले तो देखा कि बढई जा रहा है।
रुको! मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं, बड़ा भाई बोला।
मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं, बढई मुस्कुराकर बोला और अपनी राह को चल दिया.
दिल से मुस्कुराने के लिए जीवन में पुल की जरुरत होती हैं खाई की नहीं। छोटी छोटी बातों पर अपनों से न रूठें।
"दीपावली आ रही है घरेलू रिश्तों के साथ साथ सभी दोस्ती के रिश्तों पर जमी धूल भी साफ कर लेना, खुशियाँ चार गुनी हो जाएंगी"

जय श्री कृष्णा......


Sunday, January 3, 2016

king vs teacher


एक बार एक राजा गुरु  की ख्याति से बहुत प्रभावित हुआ, और उसने गुरु से मिलने हेतु उन्हें बहुमूल्य उपहारों के साथ निमंत्रण भेजा। गुरु ने उस निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया। राजा ने पुनः प्रयास किया-"गुरुदेव, मुझे मेरे महल में आपकी आवभगत करने का अवसर दीजिये, मेरा अनुग्रह स्वीकार करें।"
गुरु ने पुछा-"क्यों, वहाँ क्या तुम मुझे कोई विशेष भेंट दे पाओगे?"
"गुरुदेव मेरा पूरा राज्य आपके लिए भेंट है।"
"नहीं राजन, वही वस्तु भेंट में दे जो वास्तव में आपकी हो। "
"गुरु जी, मैं राजा हूं, राज्य मेरा है।"
"राजा, आपके पूर्वजों ने भी राज्य पर खुद का होने का दावा किया होगा। वे कहां हैं? क्या राज्य उनका रहा? अपने अतीत के जीवन काल में आपने अनेक चीजों को खुद का होने का दावा किया होगा। क्या आप अभी भी उन चीजों के मालिक हैं? यह आपका भ्रम मात्र है। ऐसी भेंट दीजिये जो वास्तव में आपकी हो।"
राजा अब सोचने लगा कि धन के आलावा वह गुरु को क्या भेंट करे।
"गुरू जी, ऐसा है तो मैं अपना शरीर आपको भेंट करता हूँ।"
"राजा, तुम्हारा यह शरीर एक दिन धूल का ढेर बन जाएगा। एक दिन आप इसका त्याग करके सांसारिक बंधनों से मुक्त होंगे। तो कैसे यह तुम्हारा हो सकता है? ऐसी भेंट दीजिये जो वास्तव में आपकी हो।"
"मेरे राज्य मेरा नहीं है और मेरा शरीर मेरा नहीं है, तो गुरु जी, तो मेरे मन को भेंट में स्वीकार करिये।"
"राजा, आपका मन लगातार आपको भटकाता है। आप अपने मन के ही गुलाम हैं। जो आपको नियंत्रित करता है उसे आप अपने अधीन नहीं कह सकते। ऐसी भेंट दीजिये जो वास्तव में आपकी हो।"
राजा दुविधा में पड़ गया। "जब मेरा राज्य, मेरा शरीर, मेरा मन ही मेरा नहीं, तो मेरे पास बचा ही क्या आपको देने के लिए?"
गुरु नानक ने मुस्कुरा कर कहा-"राजन, आप मुझे अपना 'मैं' और 'मेरा' दे दीजिये।" गुरु ने राजन से अपना अहंकार त्यागने का संकेत दिया। राजा गहन चिंतन में पड़ गया और कहा "गुरूजी, मैंने अपना सब कुछ आपको समर्पित कर दिया। मेरा अब कुछ नहीं, अब मैं कैसे शासन करूँ? मेरा मार्गदर्शन करिये।"
"राजा, तुमने हमेशा 'मेरे राज्य', 'मेरा महल', 'मेरा परिवार', 'मेरे खजाना', 'मेरी प्रजा' की मानसिकता के साथ शासन किया है। अब आपने 'मेरा' छोड़ दिया है। आप अब स्वयं के बन्दी नहीं रहे। अब आप परमेश्वर की इच्छा का निमित्त बनिए, और अपनी जिम्मेदारियों का वहन ईश्वर को समर्पण करते हुए करिये।"
राजा की आँखें खुल चुकी थी। वह समझ चुका था कि अहंकार और मोह उसकी आत्मा को जकड़ कर रखा हुआ था।

गुरु को प्रणाम कर वह चल दिया।



जय श्री कृष्णा


Saturday, January 2, 2016

गौतम बुद्ध vs स्त्री पुरुष



"स्त्री तब तक
'चरित्रहीन' नहीं हो
सकती.... जब तक पुरुष चरित्रहीन न
हो"...... गौतम बुद्ध ******************************
......संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक क्षेत्रों
की यात्रा की... एक बार वह एक गांव में
गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और
बोली- आप तो कोई "राजकुमार" लगते हैं। ...क्या मैं
जान सकती हूं कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र
पहनने का क्या कारण है ? ...बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया
कि... "तीन प्रश्नों" के हल ढूंढने के लिए उन्होंने
संन्यास लिया.. बुद्ध ने कहा.. हमारा यह शरीर जो
युवा व आकर्षक है, पर जल्दी ही यह
"वृद्ध" होगा, फिर "बीमार" व ....अंत में "मृत्यु" के
मुंह में चला जाएगा। मुझे 'वृद्धावस्था',
'बीमारी' व 'मृत्यु' के कारण का ज्ञान
प्राप्त करना है ..... बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस
स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया....
शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई।
गांव वासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस
स्त्री के घर भोजन करने न जाएं....!!! क्योंकि वह
"चरित्रहीन" है..... बुद्ध ने गांव के मुखिया से
पूछा ? .....क्या आप भी मानते हैं कि वह
स्त्री चरित्रहीन है...? मुखिया ने कहा
कि मैं शपथ लेकर कहता हूं कि वह बुरे चरित्र वाली
स्त्री है....। आप उसके घर न जाएं। बुद्ध ने मुखिया
का दायां हाथ पकड़ा... और उसे ताली बजाने को कहा...
मुखिया ने कहा...मैं एक हाथ से ताली
नहीं बजा सकता... "क्योंकि मेरा दूसरा हाथ आपने
पकड़ा हुआ है"... बुद्ध बोले...इसी प्रकार यह
स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती
है...???? ... जब तक इस गांव के "पुरुष
चरित्रहीन" न हों...!!!!अगर गांव के सभी
पुरुष अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न
होती इसलिए इसके चरित्र के लिए यहां के पुरुष
जिम्मेदार हैं....यह सुनकर सभी "लज्जित" हो
गए..... ....लेकिन आजकल हमारे समाज के पुरूष "लज्जित"
नही "गौर्वान्वित" महसूस करते है..... ... क्योकि
यही हमारे "पुरूष प्रधान" समाज की
रीति एवं नीति है..

जय श्री कृष्णा......


पागल बाबा वृन्दावन

(पागल बाबा वृन्दावन )
कृष्णभक्तों में खासतौर पर बिहारीजी के भक्तों में एक
कथा प्रचलित है। एक गरीब ब्राह्मण बांके बिहारी का
भक्त था। एक बार उसने किसी महाजन से कुछ रुपये उधार
लिए। हर महीने वह थोड़ा-थोड़ा करके कर्ज चुकाया।
आखिरी किस्त के पहले महाजन ने उसे अदालती नोटिस
भिजवा दिया कि उधार बकाया है और पूरी रकम व्याज
सहित वापस करे।
ब्राह्मण परेशान हो गया। महाजन के पास जा कर उसने बहुत
सफाई दी पर कोई असर नहीं हुआ। मामला कोर्ट में पहुंचा।
कोर्ट में भी ब्राह्मण ने जज से वही बात कही, मैंने सारा
पैसा चुका दिया है। जज ने पूछा, कोई गवाह है जिसके
सामने तुम महाजन को पैसा देते थे। कुछ सोचकर उसने
बिहारीजी मंदिर का पता बता दिया।
अदालत ने मंदिर का पता नोट करा दिया। अदालत की
ओर से मंदिर के पते पर सम्मन जारी कर दिया गया। वह
नोटिस बिहारीजी के सामने रख दिया गया। बात आई
गई हो गई। गवाही के दिन एक बूढ़ा आदमी जज के सामने
गवाह के तौर पर पेश हुआ। उसने कहा कि पैसे देते समय मैं साथ
होता था और इस-इस तारीख को रकम वापस की गई थी।
जज ने सेठ का बही- खाता देखा तो गवाही सही
निकली। रकम दर्ज थी, नाम फर्जी डाला गया था। जज
ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दिया। लेकिन उसके मन में
यह उथल पुथल मची रही कि आखिर वह गवाह था कौन।
उसने ब्राह्मण से पूछा। ब्राह्मण ने बताया कि
बिहारीजी के सिवा कौन हो सकता है।
इस घटना ने जज को इतना विभोर कर दिया किया कि
वह इस्तीफा देकर, घर-परिवार छोड़कर फकीर बन गया।
कहते है कि वही न्यायाधीश बहुत साल बाद पागल बाबा
के नाम से वृंदावन लौट कर आया।
आज भी वहां पागल बाबा का बनवाया हुआ बिहारी
जी का एक मंदिर है
जिसमें श्रीश्रीराधा-गोविन्द, श्रीश्रीनिताई-गौर
श्रीदुर्गा एवं श्रीमहादेव जी विराजमान हैं।
पागल बाबा की दिनचर्या में एक अद्भुत चीज़ शामिल
थी - उनकी भोजन पद्धति।
वो प्रतिदिन जो साधु संतो का भंडारा होता उसके
बाहर जाते वहाँ पर उनकी जूठन बटोरते फिर उसका आधा
प्रभु द्वारिकाधीश को अर्पित करते और आधा स्वयं
खाते। उनको लोग बड़ी हेय द्रष्टि से देखते थे पागल तो
आखिर पागल।
पर प्रभु तो प्रेम के भूखे है,
एक दिन सभी साधुओं ने फैसला किया आज देर से भोजन
किया जायेगा और कुछ जूठन भी नहीं छोड़ी जाएगी।
पागल बाबा भंडारे के बाहर बैठे इंतज़ार कर रहे थे की कब जूठे
पत्तल फेंके जायें और वो भोजन करें। इसी क्रम में दोपहर हो
गयी वो भूख से बिलखने लगे।
दोपहर के बाद जब बाहर पत्तल फेंके गए तो उनमें कुछ भी
जूठन नहीं थी ।उन्होंने बड़ी मुश्किल से एक एक पत्तल पोछ
कर कुछ जूठन इकट्ठी की अब शाम हो चुकी थी। वो अत्यंत
भूखे थे।
उन्होंने वो जूठन उठाई और अपने मुह में डाल ली। पर मुँह में
उसको डालते ही उनको याद आया कि अरे! आज तो
बाँकेबिहारी को अर्पित किये बिना ही भोजन, ऐसा
कत्तई नहीं होगा।
अब उनके सामने बड़ी विषम स्थिति थी वो भोजन को
अगर उगल देंगे तो अन्न का तिरस्कार और खा सकते नहीं
क्योकि प्रभु को अर्पित नहीं किया। इसी कशमकश में वो
मुख बंद कर के बैठे रहे और प्रभु का स्मरण करते रहे, वो निरंतर
रोते जा रहे थे की प्रभु इस विपत्ति से कैसे छुटकारा पाया
जाये।
पर श्रीठाकुर तो सबकी लाज रखते हैं-
रात को बाल रूप में उनके पास आये और बोले क्यों रोज़
सबका जूठा खिलाते हो और आज अपना जूठा खिलाने में
संकोच कर रहे हो।
उनकी आँखों से निरंतर अश्रु निकलते जा रहे थे। प्रभु ने
उनकी गोद में बैठ कर उनका मुख खोला और कुछ भाग
निकाल कर बड़े प्रेम से उसको खाया। अब पागल बाबा
को उनकी विपत्ति से छुटकारा मिला।
ऐसे परम भगवद्भक्त थे श्रीलीलानन्द ठाकुर (पागल बाबा)।
लाडली के लाड़ में, लाडलो बिगर गयो
इस लाड़ की लडाई में, बृज में प्रेम बिखर गयो
इस प्रेम के बिखराव में, लुटे सब रसिक जन
सब सुध बुध खोकर, मैं भी पागल है गयो



जय श्री कृष्णा......



Friday, January 1, 2016

death palace


मृत्यु का स्थान

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भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए।
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तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी  उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।
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चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।
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उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा।
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गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।
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गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे।
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उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोस दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया।
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आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था।
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यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी।
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मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।"
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गरुड़ समझ गये "मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।"
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इस लिए कृष्ण कहते है।
.
करता तू वह है
               जो तू चाहता है
परन्तु होता वह है
               जो में चाहता हूँ
कर तू वह
               जो में चाहता हूँ
फिर होगा वो
               जो तू चाहेगा ।



जय श्री कृष्णा......

रिश्तों में झूठ



रिश्तों में जब झूठ बोलने की आवश्यकता महसूस होने लगे, तब यह समझना की अब रिश्ता समाप्ति की और है। इसलिए ऐसा कोई करम न बनायें जिस वजह से झूठ का सहारा लेना पड़े। बाकी बोलने का हक़ छीना जा सकता है, मगर खामोशी का नहीं। आपकी प्यार भरी ख़ामोशी में इतना पॉवर होना चाइये की सामनेवाले को एहसास हो जाए। करके देखो आसान है।

JIYO DIL SE




जय श्री कृष्णा......

कृष्ण vs काली माँ




एक व्यक्ति बहुत परेशान था। उसके दोस्त ने उसे सलाह
 दी कि कृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो।
 उसने एक कृष्ण भगवान की मूर्ति घर लाकर
 उसकी पूजा करना शुरू कर दी।
 कई साल बीत गए लेकिन
 कोई लाभ नहीं हुआ।

 एक दूसरे मित्र ने कहा कि
 तू काली माँ कीपूजा कर,
जरूर तुम्हारे दुख दूर होंगे।
 अगले ही दिन वो एक काली माँ
 की मूर्ति घर ले आया।

 कृष्ण भगवान कीमूर्ति मंदिर के ऊपर बने एक टांड पर रख दी और
 काली माँ की मूर्ति मंदिर में रखकर पूजा शुरू कर दी।

 कई दिन बाद उसके दिमाग में ख्याल आया कि जो अगरबत्ती, धूपबत्ती
 काली जी को जलाता हूँ, उसे तो
 श्रीकृष्ण जी भी सूँघते होंगे।
 ऐसा करता हूँ कि श्रीकृष्ण का मुँह बाँध देता हूँ।

 जैसे ही वो ऊपर चढ़कर श्रीकृष्ण का
 मुँह बाँधने लगा कृष्ण भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो हैरान
 रह गया और भगवान से पूछा -
इतने वर्षों से पूजाकर रहा था तब
 नहीं आए! आज कैसे प्रकट हो गए?
भगवान श्रीकृष्ण ने समझाते हुए कहा, "आज तक तू
 एक मूर्ति समझकर मेरी पूजा करता था।
 किन्तु आज तुम्हें एहसास हुआ कि

 "कृष्ण साँस ले रहा है "
बस मैं आ गया।"

प्यार से कहिये

जय श्री कृष्णा......

thoughtfull though

श्री रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसीदास जी ने लिखा -

सिय राम मय सब जग जानी ;
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी !

अर्थात

 सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिये !

यह लिखने के उपरांत
 तुलसीदास जी जब अपने गाँव की तरफ जा रहे थे

तो

 किसी बच्चे ने आवाज़
दी -महात्मा जी उधर से मत जाओ

बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है !

तुलसीदास जी ने विचार किया हू !
कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है !
अभी तो लिखा था कि
सबमे राम हैं ;उस बैल को प्रणाम करूगा और चला जाऊंगा !

पर

जैसे ही वे आगे बढे बैल ने उन्हें मारा  और वे गिर पड़े !

किसी तरह से वे वापिस वहा जा पहुचे जहा श्री रामचरितमानस लिख रहे थे

सीधा चौपाई पकड़ी
और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे कि

 श्री हनुमान जी ने प्रगट हो कर कहा -तुलसीदास जी ये
क्या कर रहे हो ?

तुलसीदास जी ने क्रोधपूर्वक कहा -यह चौपाई गलत है !
और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह
सुनाया !

हनुमान जी ने मुस्करा कर कहा -
चौपाई तो एकदम सही है आपने बैल में तो भगवान को
देखा पर बच्चे में क्यों नहीं ?

आखिर उसमे भी तो भगवान थे ;वे तो आपको रोक रहे थे पर आप
ही नहीं माने !

ऐसे ही छोटी-२ घटनाये हमें बड़ी घटनाओं का संकेत देती हैं उन पर विचार कर आगे बढ़ने वाले
कभी बड़ी घटनाओं का शिकार नहीं होते !




जय श्री कृष्णा......



Who is packing your parachute?

Who is packing your parachute?

Air Commodore Vishal was a Jet Pilot. In a combat mission his fighter plane was destroyed by a missile. He however ejected himself and parachuted safely. He won acclaims and appreciations from many.

After five years one day he was sitting with his wife in a restaurant. A man from another table came to him and said "You're Captain Vishal ! You flew jet fighters. You were shot down!"

"How in the world did you know that?" asked Vishal.

"I packed your parachute," the man smiled and replied.
Vishal gasped in surprise and gratitude and thought if parachute hadn't worked, I wouldn’t be here today.

 Vishal couldn't sleep that night, thinking about that man. He wondered how many times I might have seen him and not even said 'Good morning, how are you?' or anything because, he was a fighter pilot and that person was just a safety worker"

So friends, who is packing your parachute?
Everyone has someone who provides what they need to make it through the day.

We need many kinds of parachutes when our plane is shot down – we need the physical parachute, the mental parachute, the emotional parachute, and the spiritual parachute.
We call on all these supports before reaching safety.

Sometimes in the daily challenges that life gives us, we miss what is really important.

We may fail to say hello, please, or thank you, congratulate someone on something wonderful that has happened to them, give a compliment, or just do something nice for no reason.

As you go through this week, this month, this year, recognize the people who pack your parachute.


I just want to thank  everyone who packed my parachute this year one way or the other - through your words, deeds, prayers etc!!

Don't want to take any of you for granted.


जय श्री कृष्णा......

#be logical

When Lord Chaitanya was traveling in South India, in a big temple, Ranganatha temple, He went to see the Deity, and He saw one brahmana was reading Bhagavad-gita. And people were joking with him, ‘Oh, Mr. Brahmana, how you are reading Bhagavad-gita?’ Because they were neighbors, they knew that this brahmana was illiterate, and he was studying Bhagavad-gita. So they were joking. But the brahmana did not care about them. He was taking the book and in his own way he was reading. Chaitanya Mahaprabhu saw this incident. He came to the brahmana. He asked the brahmana, ‘My dear brahmana, what you are reading?’ The brahmana could understand, ‘This person is not joking with me; he is serious.’ So he explained, ‘My dear sir, I am reading Bhagavad-gita. Unfortunately, I am illiterate.

I do not know even the alphabet.’ ‘Why you are reading Bhagavad-gita?’ So he said, ‘My spiritual master knows that I am illiterate, but still, he has asked me to read Bhagavad-gita. What can I do? Therefore I have taken this book. I am simply seeing. I do not know how to read.’ ‘Oh, that’s all right. You cannot read. But I see that you are crying. How you are crying, if you are not reading?’ ‘Yes, I am crying. Of course, there is cause.’ ‘What is that?’ ‘As soon as I take this Bhagavad-gita, I remember Krishna. Krishna is sitting as driver and Arjuna is hearing. I have heard the story. I know something of the instruction but cannot read. So as soon as I take this book, this picture comes before me and I simply think how Krishna is nice that He has become a charioteer of His devotee. He is so great. Still, He has accepted a menial service of His devotee. This gives me so much pleasure that I cry.’ Chaitanya Mahaprabhu embraced him, ‘Your Bhagavad-gita reading is perfect. You have taken the essence.’

“If you simply remember how Krishna is teaching Arjuna and Arjuna is hearing—if you simply remember the picture—that is sufficient. Even if you think that you cannot read. Because after all, we have to become Krishna conscious. We don’t have to become a learned man to argue with another learned man. If it is possible, we can do that. But it does not make any difference if I cannot argue with others or if I cannot teach very nicely Bhagavad-gita to others. Simply if I remember this picture, that is perfection. Because we have to become Krishna conscious. We have to simply think of Krishna. You think in any way. That is your perfection. Smartavyah satatam visnuh [Padma Purana]. This is the injunction. You have to think of Visnu always. This is samadhi; this is meditation; this is yoga siddhi, perfection of yoga.

“One who has learned to think of Krishna always, he is already on the perfectional stage. Aradhito yadi haris tapasa tatah kim [Narada Pancaratra]. If one has come to this stage, just to understand Krishna to be the great, the Supreme Personality of Godhead, and he’s a surrendered soul: ‘Krishna, whatever You like You do. I am surrendered.’ This is aradhana. Then he isn’t required to undergo any austerities or penance. His everything is finished. And naradhito yadi haris tapasa tatah kim. And if he does not come to this stage, his so-called scholarship, learned argument, this or that—all nonsense, finished. Useless. One has to come to this stage. Therefore Lord Chaitanya embraced the brahmana: ‘Yes, your study of Bhagavad-gita is perfect.’ Because one has to come to this stage, thinking of Krishna always.


जय श्री कृष्णा......